Stillbirth:Gynaecologist Manju Gupta explains how to deal with life after stillbirth

Life After Stillbirth: अपने बच्‍चे को खोना शायद इस दुनिया का सबसे बड़ा दुख और सदमा होता है। कोई अपने दुश्‍मन के लिए भी इस तकलीफ को नहीं चाहता है। जब मरा हुआ बच्‍चा पैदा होता है यानि स्टिलबर्थ (Stillbirth) होता है या जन्‍म लेने के कुछ समय बाद ही शिशु की मृत्‍यु हो जाती है, मां-बाप को बहुत गहरा सदमा लगता है और उनके शरीर में कई शारीरिक बदलाव भी आते हैं। ये बदलाव पैरेंट्स की सेहत को लंबे समय तक प्रभावित कर सकते हैं और इनका असर मानसिक और भावनात्‍मक, दोनों पहलुओं पर पड़ सकता है। नोएडा के मदरहुड हॉस्‍पीटल की सीनियर कंसल्‍टेंट गायनेकोलॉजिस्‍ट डॉक्‍टर मंजू गुप्‍ता से हम जानेंगे कि निओनेटल डेथ और स्टिलबर्थ के बाद मां-बाप की जिंदगी में किस तरह के बदलाव आते हैं।

प्रेग्‍नेंसी शरीर को कई तरह से बदल देती है और स्टिलबर्थ या निओनेटल डेथ के बाद शरीर इनवोल्‍यूशन नाम की प्रक्रिया में चला जाता है। इस प्रक्रिया में गर्भाशय अपने पुराने साइज और शेप में आने की कोशिश करता है। इस प्रक्रिया में कुछ हफ्तों से लेकर कुछ महीनों का समय लग सकता है और इसमें यूट्राइन लाइनिंग यानि लोचिया गिर जाती है। लोचिया भारी हो सकती है और इसे गिरने में कई हफ्तों का समय लग सकता है। इसकी वजह से पैरेंट्स को अपने बच्‍चे को खोने की तकलीफ याद आती रहती है।

भावनात्‍मक बदलाव

स्टिलबर्थ या निओनेटल डेथ के बाद पैरेंट्स को भावनात्‍मक बदलावों से भी गुजरना पड़ता है। हर किसी को अलग तरीके से दुख महसूस होता है और हर किसी का इससे निपटने का तरीका भी अलग होता है। स्टिलबर्थ या निओनेटल डेथ के बाद पैरेंट्स को गिल्‍टी महसूस हो सकता है। उन्‍हें लग सकता है कि उन्‍होंने प्रेग्‍नेंसी के दौरान कुछ चीजें नहीं की जिसकी वजह से ऐसा हुआ है। शिशु की मृत्‍यु के लिए वो खुद को जिम्‍मेदार समझ सकते हैं।

गुस्‍सा आता है

पैरेंट्स को खुद पर, अपने पार्टनर पर या डॉक्‍टर पर या यहां तक कि मृत शिशु पर भी गुस्‍सा आ सकता है। उन्‍हें लगता है कि जो भी हुआ वो गलत था और ऐसा क्‍यों हुआ। कुछ मां-बाप खुद को अकेला कर लेता है और अपने दुख को अकेले में झेलना चाहते हैं। उन्‍हें लगता है कि वो उन लोगों से बात ही नहीं कर सकते जिन्‍होंने इस तकलीफ को महसूस नहीं किया है।

कैसे करें हैंडल

इस स्थिति में मां-बाप को काउंसलिंग की मदद लेनी चाहिए। इससे वो अपने इमोशंस और तकलीफ को हैंडल करना सीख सकते हैं। यहां पर पैरेंट्स को अपनी भावनाओं के बारे में बात करने, सवाल पूछने और दुख से बाहर निकलने में मदद मिल सकती है। अपने जैसे दूसरे पैरेंट्स से कनेक्‍ट करने के लिए आप सपोर्ट ग्रुप्‍स से भी जुड़ सकते हैं। उनके अनुभव, सलाह को जानकर आपकी तकलीफ थोड़ी कम हो सकती है। इसके अलावा पैरेंट्स को अपनी देखभाल पर भी ध्‍यान देना चाहिए। पर्याप्‍त आराम करें, पौष्टिक आहार लें और ऐसे काम करें जो उन्‍हें आनंद देते हों। इससे आप शारीरिक और भावनात्‍मक रूप से स्‍वस्‍थ महसूस कर सकते हैं।